गया गुज़रा सपने खुली आँखों के हम करनापड़ताहैसबकोहीश्रम।देताहैपरमात्मासिर्फलकीरे दूसरा दुनियां वैसी आज कल आज मुद्दत बीतेदिनयादें साल दर साल भारत भूमि बसंत सच उत्साह पिंजरबंद ना आया चाहतेहोजिंदगीकोसमझनातोपीछेदेखो आना जाना उत्सव ख़ुशी